14 फ़रवरी 2015

प्रीत की झीनी चदरिया...!




आओ हम ताना बुने
ज़िन्दगी के करघे पर
एक हाथ तुम्हारा, एक मेरा
और रंग तो प्यार के ही होंगे ना?
और हाँ,
कुछ बूटे
नोक-झोंक,
मान-मुनहार के भी बनाना
तभी तो खिलेगी ना
हमारी, प्रीत की झीनी चदरिया...

देखो,
तुम रोते बहुत हो
ऐसा मत करना
वरना रंग बह जाएँगे
मुझे हल्के रंग पसन्द नहीं..
वैसे भी,
जो खुशी के आँसू हैं ना
वो रंगों को गीला रखने के लिए काफ़ी हैं..
एक बात और
पास ही रहना मेरे
जैसे एक जिस्म, दो जान
धागे जितने महीन और करीब हों
कपड़ा उतना ही सुन्दर होता है
और मुलायम भी...

सुनो,
डोर, जो विश्वास की है
तोड़ ना देना उसे
वरना कपड़े पे दिखती साँठ
चुभेगी ज़िन्दगी भर
जब भी सहलाना चाहोगे
प्यार से...

क्यों
बुनोगे ना?
एक ताना
प्यार का, विश्वास का
मेरे साथ
ज़िन्दगी के करघे पर.....!!

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2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-02-2015) को "कुछ गीत अधूरे रहने दो..." (चर्चा अंक-1890) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पाश्चात्य प्रेमदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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