5 मई 2014

बन्नी / विवाह-गीत (लोक-गीत)






मेरी लाडो रूप-सरूप
कि वर मिले.....हरे-२
कि वर मिले सांवरिया.....

लाडो की दादी यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥१॥

लाडो की बुआ यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥२॥

लाडो की चाची यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥३॥

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5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 07 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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