22 जुलाई 2013

अनुभूतियों के उजाले में...!






अनुभूतियों के उजाले में
एक परछाईं सी दिखती है
शायद एहसास है वो तेरा
महसूस तो यही होता है...

कभी-२ उलझन सी होती है
कि तुम होकर भी नहीं हो।
घर की दीवारों पर
तेरा लम्स सा महसूस होता है...

मैं हूँ, कि शायद वो भी नहीं हूँ
या मुझ में भी तू है,
यही तो वो जलजला है
जो मुझे जिन्दा रखता है.....!!

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2 जुलाई 2013

कवि की पीड़ा..!






अचानक एक दिन
लिखते-२
ठिठक गई मेरी कलम
दर्द..........!
किसका है ये दर्द ?
कहीं पूँछने ना लगें लोग...

क्या कवि सिर्फ़ अपनी ही पीड़ा लिखता है ?
क्यों नहीं समझते लोग
कि कवि के अन्दर
एक दूसरा समाज साँस लेता है
जिसके दर्द उसके होते हैं...
अभिव्यक्ति भले ही कवि की हो
परन्तु भोगा तो किसी और ने होता है।
कवि संवेदनशील होता है
जो एहसास कराता है, इस बाहरी समाज को
उस आंतरिक पीड़ा से
जिसकी ओर से इसने, आँखें बन्द कर रखी हैं
और पहन रखा है मुखौटा
प्रगतिशील होने का !!

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