18 दिसंबर 2013

अपने-२ आसमान...!






ज्यों-२
तुम्हारे, ख्वाहिशों के पंख
उड़ान भरते हैं
मेरे पैरों तले
एक टुकड़ा जमीन
खिसक जाती है...
मैं जब भी मिटाती
हमारे बीच की दूरी को
सामन्जस्य के इरेज़र से
तुम खींच देते
कहीं ज्यादा बड़ी लकीर
और बढ़ा देते
दो और कदम
अपने आसमाँ की ओर...
और मैं,
अपने आसमाँ तले
छुपा लेती, चुपके से
उन हाथों को
जो उठे थे, कभी
तुम्हारी सफ़लता की
दुआ के लिए.....!!

   x  x  x                                                

9 दिसंबर 2013

तुम्हारे आँसू गीले बहुत हैं...!






तुम्हारे आँसू गीले बहुत हैं।
इतने
कि उनके गीलेपन से
सीला-२ सा हो गया है
सारा मौसम.....

इक गन्ध सी समा गई है
जिस्म में मेरे
साँस भी लूँ, तो
सीलापन थरथराता है...

पोर-२ स्पन्दित हो उठता है
तुम्हारी आहों से।

ये गीलापन
हरदम हरे रखता है
तुम्हारे ज़ख्म...

इन्हें प्यार की हवा दो।

और जो
आँखों की कोर में
कुछ बूँदें बची हैं,
इन्हें मुस्कुराना सिखा दो.....!!

   x     x     x     

2 अक्तूबर 2013

बाल-गीत






गुड़िया रानी – गुड़िया रानी, 
                 नटखट है तू, करे शैतानी।।

पापा के दिल की रानी है, गुड़िया तू जापानी है।
तोतली तेरी बोली है, पर सब बच्चों की नानी है.....

मम्मी की है राजदुलारी, चंदा की तू करे सवारी।
दुनिया तुझ पर नाज करेगी, तू दुनिया पर राज करेगी.....

मेरी गुड़िया सयानी है, सबके दिल की रानी है।
थोड़ी सी शैतान है ये, मगर अभी नादान है ये.....

       x     x     x     x

18 सितंबर 2013

कला





‘कला’
गर परिभाषित करना चाहें इसे
शब्दों में
तो बस ये उद्गार ही व्यक्त होते हैं
कि
भावनाएँ
जो एक हृदय से प्रस्फ़ुटित हो
दूसरे के हृदय में साँस लेती हैं,
कभी उठती है एक हिलोर
जो वायस बनती है
नव दृष्टि, नव सृष्टि के निर्माण की
कहीं फ़ूटता है एक अंकुर
जो चिन्हांकन करता है
नव कली के प्रस्फ़ुटन का.....
गर हो उत्कण्ठा
सत्य, शिव और सुन्दर के
पूर्ण साक्षात्कार की
तो कला के
शरणागत होना ही होगा.....
भले ही बना दिया जाए व्यापार
और सज गए हों बाजार
मोल लगाने को बैठे हों खरीददार
पर जो बिक रही है
वो कुछ भी हो
पर कला नहीं हो सकती.....!!

X     X     X     X


12 अगस्त 2013

तलाश...!






तलाश
खुद की
खुद के भीतर
अनन्त कहीं गहराई में
पर
हर बार
कुछ दूरी तय कर
ठिठक जाती...
रोक लेती
तुम्हारी याद
मील के पत्थर की तरह...
यह सही भी है
क्योंकि नहीं तय होतीं
लम्बी दूरियाँ
बिना किसी सहारे के...
पर व्यर्थ ही होगी
ये तलाश
क्योंकि
मैं तो हूँ ही नहीं खुद में
तुम ही तुम हो
हर सिम्त
मुस्कुराते
तो खुद को कहाँ खोजूँ मैं
क्या तुम में ?
हाँ शायद,
तुममे ही
पूरी होगी मेरी तलाश.....!!

  x   x   x   x